Tuesday, August 28, 2012

सनातन धर्म : क्या, क्यों और कैसे

गंगाजल पवित्र क्यों माना  जाता है ?
गंगा नदी के जल में कभी किसी तरह के कीड़े नहीं पड़ते। इसको देवताओ की नदी भी कहते है , इसका उद्गम स्थान गंगोत्री में स्थित गोमुख है । हिन्दू धर्म के लोग गंगा नदी को 'गंगा माँ' एवं 'गंगा जी' जैसे सम्मान बोधक नामो से पुकारते है। 
 
शिखा क्यों रखते है ? क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है?
संध्या वंदन , यज्ञ अनुष्ठान, गायत्री जप इत्यादि में शिखा का होना अनिवार्य माना गया है । धर्मं शास्त्रों में शिखा में ग्रंथि लगा कर ही यज्ञ अनुष्ठान , हवन एवं जप करने को महत्ता प्रदान की गयी है। शिखा वाले स्थान पर एक अति सूक्ष्म छिद्र होता है, जिसे ब्रह्म रंध्र या दशम द्वार कहते है। यह  छिद्र अति संवेदनशील माना जाता है, इस पर तनिक सी चोट, मनुष्य की मुर्त्यु का कारण बन सकती है। अतः ब्रह्म रंध्र की रक्षा हेतु शिखा रखने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है। शास्त्रो में शिखा रखने के अनेको लाभ बतलाये गए है। इससे मेधा शक्ति प्रखर होती है ।

यज्ञोपवीत क्या होता है, इसे  क्यों धारण करते है?
यज्ञोपवीत दो शब्दों से मिलकर बना है , 'यज्ञ' एवं 'उपवीत' ; इसका अर्थ होता है , जिसे यज्ञ करने का पूर्ण रूप से अधिकार प्राप्त हो जाये। इसको ब्रह्मसूत्र भी कहते है, इसको पहनने के पश्चात मनुष्य ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाता है और उसको विशेष नियमो एवं सद आचरणों का पालन करना होता है। इसको जनेऊ भी कहते है।  जनेऊ कई प्रकार के होते है - तीन धागे वाला एवं छः धागे वाला ।
ब्रह्मचारी को तीन धागे वाला जनेऊ  एवं विवाहित पुरुष को छह धागे  वाला जनेऊ  धारण करना चाहिए।


जनेऊ कान पर क्यों चढ़ाते है?
जनेऊ को अपवित्र होने से बचाने के लिए  लघुशंका एवं दीर्घशंका के समय उसे दाहिने कान पर चढाने का नियम है। दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाने  का वैज्ञानिक कारण है; आयुर्वेद के अनुसार, दाहिने कान पर 'लोहितिका' नामक एक विशेष नाड़ी  होती है, जिसके दबने से मूत्र का पूर्णतया निष्कासन हो जाता है। इस नाड़ी का सीधा संपर्क अंडकोष से होता है।  हर्निया नामक रोग का उपचार करने के लिए डॉक्टर दाहिने कान की नाड़ी का छेधन करते है । एक तरह से जनेऊ 'एक्यूप्रेशर' का भी काम करता है ।

Thursday, August 23, 2012

शंख एवं शंख के उपयोग

हिन्दू धर्म में  शंख को अत्यधिक पवित्र एवं शुभ माना जाता है । इसका पावन नाद वातावरण को शुद्ध, पवित्र एवं निर्मल करता है। शंख का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है । शंख का प्रयोग प्रत्येक शुभ कार्य में किया जाता है । शंख की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेको कथाये प्रचलित है । एक कथा के अनुसार शंख की उत्पत्ति शिवभक्त चंद्रचूड़  की अस्थियो से हुई , जब भगवान  शिव ने क्रोधवश होकर भक्त चंद्रचूड़  का त्रिशूल से वध कर दिया, तत्पश्चात  उसकी अस्थियाँ समुद्र में प्रवाहित कर दी गयी।
विष्णु पुराण  के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख समुद्र मंथन के समय आठवे स्थान पर प्राप्त हुआ था । शंख के अग्र भाग में गंगा एवं सरस्वती का , मध्य भाग में वरुण देवता का एवं पृष्ठ भाग में ब्रम्हा जी का वास होता है। शंख में समस्त तीर्थो का वास होता है।  वेदों के अनुसार शंख घोष को विजय का प्रतीक माना जाता है। महाभारत  युद्ध में श्री कृष्ण भगवान् एवं पांडवो ने विभिन्न नामो के शंखो का घोष किया था। श्री कृष्ण भगवान् ने पांचजन्य, युधिष्ठुर ने अनन्तविजय, भीम ने पौण्ड्र, अर्जुन ने देवदत्त, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखो का प्रचंड नाद करके कौरव सेना में भय का संचार कर दिया था।

शंख तीन प्रकार के होते है :
  • वामावर्ती  - खुला हुआ भाग बायीं ओर होता है ।
  • दक्षिणावर्ती - खुला हुआ भाग दायीं ओर होता है ।
  • मध्यावर्ती - मध्य में खुला हुआ भाग होता है । 
 दक्षिणावर्ती शंख शुभ एवं मंगलदायी होता है अतः इसका उपयोग पूजा-पाठ, अनुष्ठानों  एवं शुभ कार्यो    किया जाता है ।


शंख के उपयोग 


  • दक्षिणावर्ती शंख में प्रतिदिन प्रातः थोड़ा सा  गंगा जल भरकर सारे  घर में छिड़काव करे। भूत प्रेत बाधा को दूर करने का यह एक अचूक उपाय है ।
  • शंख में जल भरकर रखा जाता है और पूजा करते समय छिड़का जाता है । शंख में जल, दुग्ध भरकर भगवान  का अभिषेक भी किया जाता है ।
  • पुराणों के अनुसार, घर में दक्षिणावर्ती शंख रखने से श्री लक्ष्मी जी का स्थायी निवास होता है ।
  • शयन कक्ष में शंख रखने से पति पत्नी के मध्य सदैव प्रेमभाव बना रहता है ।
  • शंख बजाने से ह्रदय की मांसपेशिया मजबूत होती है, मेधा शक्ति प्रखर होती है तथा फेफड़ो का व्यायाम होता है । अतः श्वास सम्बन्धी रोगों से मुक्ति मिलती है तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ती है ।
  • शंख की ध्वनि में रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति होती है। जहां जहां तक शंख ध्वनि पहुचती है, वहाँ तक के रोगाणुओं का नाश हो जाता है।
  • वर्तमान युग में रक्तचाप, मधुमेह, ह्रदय सम्बन्धी रोग, कब्ज़ , मन्दाग्नि आदि रोग आम हो गए है । नियमित रूप से शंख बजाइये  और इन रोगों से मुक्ति पाइये ।
  • अगर आपके घर में कोई वास्तु दोष है, तो आप प्रातः और सायंकाल शंख अवश्य बजाये। शंख बजाने से घर का वास्तुदोष दूर हो जाता है ।
  • अगर हमारे शरीर में स्थापित चक्रों में संतुलन न हो तो हमें रोग घेर लेते है, शंख चक्र संतुलित करने में समर्थ है। 
  • घर में शंख बजने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है , इससे घर में निवास करने वालो के तन मन पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है । सकारात्मक विचारों का उदभव होता है ।
  • अध्धयन कक्ष में शंख रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
  • वैज्ञानको के अनुसार, शंख घोष का प्रभाव समस्त ब्रम्हाण्ड पर होता है।



Saturday, August 11, 2012

जन्माष्टमी : भगवान् श्री कृष्ण का जन्म दिवस

जन्माष्टमी हिन्दुओ के सबसे बड़े पर्वो में से एक है । इस  पर्व को समस्त हिन्दू हर्ष और उल्लास के साथ मनाते  है । भगवान् श्री कृष्ण ने इसी दिन अधर्म  का नाश एवं धर्म की संस्थापना के लिए  पृथ्वी पर अवतार लिया   था ।
यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ता है । 
भगवान् कृष्ण का जन्म द्वापर युग में कंस के कारागार  में हुआ था । भगवान् कृष्ण ने अनेको राक्षसों का वध करके जनसमाज में शान्ति एवं धर्म की स्थापना की। कंस, बकासुर, नरकासुर, पूतना जैसे राक्षस प्रमुख है । महाभारत के महायुद्ध में वह अर्जुन के सारथि बने और श्रीमद भगवद्गीता का उपदेश भी दिया ।
भगवान् श्री कृष्ण 125 वर्षो तक इस पृथ्वी लोक पर रहे और अपनी मनमोहन मुस्कान से जनमन को मोहते रहे ।