गंगाजल पवित्र क्यों माना जाता है ?
गंगा नदी के जल में कभी किसी तरह के कीड़े नहीं पड़ते। इसको देवताओ की नदी भी कहते है , इसका उद्गम स्थान गंगोत्री में स्थित गोमुख है । हिन्दू धर्म के लोग गंगा नदी को 'गंगा माँ' एवं 'गंगा जी' जैसे सम्मान बोधक नामो से पुकारते है।
शिखा क्यों रखते है ? क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है?
संध्या वंदन , यज्ञ अनुष्ठान, गायत्री जप इत्यादि में शिखा का होना अनिवार्य माना गया है । धर्मं शास्त्रों में शिखा में ग्रंथि लगा कर ही यज्ञ अनुष्ठान , हवन एवं जप करने को महत्ता प्रदान की गयी है। शिखा वाले स्थान पर एक अति सूक्ष्म छिद्र होता है, जिसे ब्रह्म रंध्र या दशम द्वार कहते है। यह छिद्र अति संवेदनशील माना जाता है, इस पर तनिक सी चोट, मनुष्य की मुर्त्यु का कारण बन सकती है। अतः ब्रह्म रंध्र की रक्षा हेतु शिखा रखने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है। शास्त्रो में शिखा रखने के अनेको लाभ बतलाये गए है। इससे मेधा शक्ति प्रखर होती है ।
यज्ञोपवीत क्या होता है, इसे क्यों धारण करते है?
यज्ञोपवीत दो शब्दों से मिलकर बना है , 'यज्ञ' एवं 'उपवीत' ; इसका अर्थ होता है , जिसे यज्ञ करने का पूर्ण रूप से अधिकार प्राप्त हो जाये। इसको ब्रह्मसूत्र भी कहते है, इसको पहनने के पश्चात मनुष्य ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाता है और उसको विशेष नियमो एवं सद आचरणों का पालन करना होता है। इसको जनेऊ भी कहते है। जनेऊ कई प्रकार के होते है - तीन धागे वाला एवं छः धागे वाला ।
ब्रह्मचारी को तीन धागे वाला जनेऊ एवं विवाहित पुरुष को छह धागे वाला जनेऊ धारण करना चाहिए।
ब्रह्मचारी को तीन धागे वाला जनेऊ एवं विवाहित पुरुष को छह धागे वाला जनेऊ धारण करना चाहिए।
जनेऊ कान पर क्यों चढ़ाते है?
जनेऊ को अपवित्र होने से बचाने के लिए लघुशंका एवं दीर्घशंका के समय उसे दाहिने कान पर चढाने का नियम है। दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण है; आयुर्वेद के अनुसार, दाहिने कान पर 'लोहितिका' नामक एक विशेष नाड़ी होती है, जिसके दबने से मूत्र का पूर्णतया निष्कासन हो जाता है। इस नाड़ी का सीधा संपर्क अंडकोष से होता है। हर्निया नामक रोग का उपचार करने के लिए डॉक्टर दाहिने कान की नाड़ी का छेधन करते है । एक तरह से जनेऊ 'एक्यूप्रेशर' का भी काम करता है ।
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